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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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श्रीमद्भागवत -६१ ;वीरभद्र द्वारा दक्षयज्ञ विध्वंश और दक्ष वध

श्रीमद्भागवत -६१ ;वीरभद्र द्वारा दक्षयज्ञ विध्वंश और दक्ष वध

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महादेव ने जब नारद से सुना 

पिता दक्ष से अपमानित हो 

प्राण त्याग दियें हैं सती ने 

बड़ा क्रोध हुआ तब उनको।


ऋभुओं ने भगाया रुद्रगणों को 

उनको सब ये पता चला जब 

क्रोध से उग्र रूप धारण किया 

उखाड ली अपनी एक जटा तब।


आग की लपट सामान जटा ये 

पृथ्वी पर उसको पटक दिया 

तुरंत ही तब उस जटा से 

लम्बा छोड़ा एक पुरुष प्रकट हुआ।


शरीर उसका इतना विशाल था 

स्वर्ग को वो कर रहा स्पर्श था 

एक हजार भुजाएं उसकी 

और वो पुरुष श्याम वर्ण था।


तीन नेत्र और विकराल दाढ़ें थीं 

अग्नि के सामान जटाएं 

गले में नर मुण्डों की माला 

हाथ में अस्त्र शास्त्र सजाये।


हाथ जोड़ पूछे शंकर से 

हे भगवान, अब क्या करूं मैं 

भूतनाथ कहें, वीर रूद्र तुम्हे 

दक्ष के यज्ञ में अभी जाना है।


तू तो मेरा ही अंश है 

पार्षदों का अधिनायक बनकर 

दक्ष के यज्ञ को नष्ट करो तुम 

बोले रूद्र क्रोध में भरकर।


परिक्रमा शंकर की करकर 

वीरभद्र तैयार हो गया 

त्रिशूल एक हाथ में लेकर 

यज्ञ मंडप की और चल दिया।


अनेकों सेवक भगवान रूद्र के 

हो लिए उनके पीछे पीछे 

उधर यज्ञशाला में बैठे 

यजमान ब्राह्मण थें ये सोचें।


उत्तर दिशा में धुल उड़ रही 

अँधेरा हो रहा ये कैसा 

आसमान अंधी से भर गया 

लग रहा ये प्रलय के जैसा।


दक्ष की पत्नी प्रसूति ने कहा 

दक्ष द्वारा सती तिरस्कार का 

बहनों के सामने निरादर किया उसका 

शायद ये फल है उस अपराध का।


जो लोग बैठे उस यज्ञ में 

भय के कारण बातें थे कर रहे 

इतने में आकाश और पृथ्वी पर 

सहस्त्रों उत्पात होने लगे थे।


यज्ञ मंडप को सभी और से घेरा 

रुद्रसेना ने मंडप को नष्ट किया 

अग्नि को बुझाया उन्होंने 

देवताओं को था पकड़ लिया।


मणिमाण ने भृगु ऋषि को बाँध लिया 

वीरभद्र ने दक्ष को कैद किया 

चण्डीश ने पूषा को बांधा और 

भग्देवता को नंदी ने पकड़ लिया।


बाकी सब ऋषि और देवता 

भाग गये वो यहाँ वहां सब 

वीरभद्र ने भृगु मुनि की 

दाढ़ी मूंछ नोच ली थी तब।


क्योंकि प्रजापतिओं के बीच में 

मूछें ऐंठते हुए भृगु ने 

संग दक्ष के शिव शंकर का 

अपमान किया था उस सभा में।


क्रोध में भरकर वीरभद्र ने 

भगदेवता को पृथ्वी पर पटका 

और उनकी आँखें निकल लीं 

क्योंकि अपराध एक उनका भी था।


बुरा भला जब दक्ष कह रहे 

महादेव को शाप दे रहे 

सैन देकर तब उकसाया था 

दक्ष को इन्हीं भग्देवता ने।


पूषा के थे दाँत तोड़ दिए 

वीरभद्र ने क्रोध में आकर 

महादेव को गाली दें दक्ष जब 

पूषा हंसे थे दाँत दिखाकर।


वीरभद्र फिर बैठ गए थे 

छाती पर, गिरा कर दक्ष को 

यज्ञपशुओं को जैसे मारें 

अलग कर दिया धड़ से शीश को।


देवताओं में हाहाकार मच गया 

वीरभद्र थे अत्यंत क्रोध में 

यज्ञ अग्नि में सिर को डाला 

कैलाश को तब फिर वो चले गए।


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