युद्ध कर
युद्ध कर
बंधे हाथ,
झुका सिर,
श्याम वलयावृत्त
नत-निष्प्रभ आँखें,
धुँधला वदन,
सूखा कृष बदन,
"जैसे सिकुड़ गया हो गगन !"
ये तेरा चित्र नहीं है।
उठ ! जाग ! हे सबल ,
चल उठ, जाग जगा महाबल !
निज वास्तविक रूप में प्रकट हो,
चाहे परिस्थितियां कितनी विकट हो,
उठा, शस्त्र संभाल !
फैला भुजाएँ विशाल !
अपने आप को तू सिद्ध कर,
अशुभ का तू वध कर ,
दुबक के क्यों रहा है डर ??
चल, जाग
युद्ध कर, युद्ध कर , युद्ध कर ।