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V. Aaradhyaa

Inspirational

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V. Aaradhyaa

Inspirational

आखिर करती ही क्या हो तुम?

आखिर करती ही क्या हो तुम?

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कई बार सुनती हूँ यह जुमला,

आखिर तुम करती ही क्या हो!

"घर संवारती,बच्चों को संभालती हूँ"

कहकर तुम आखिर जताती क्या हो!


सुनकर विदिर्ण हृदय हो जाता है,

पर फिर बच्चों का ख्याल आ जाता है!

सोचती हूँ, ये बालक हैं कच्ची मिट्टी समान,

एक माँ जानती है गढ़ने का उचित परिमाण!


फिर, क्या फर्क पड़ता है कोई इसे दे ना दे मान,

एक स्त्री की ज़िम्मेदारी का है भला किसे गुमान!

निज अस्तित्व की बन गई मैं खुद पुख्ता पहचान,

घर की धुरी कहलाती मैं,और अपना क्या करुँ बखान!


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