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Sapna Shrivastava

Inspirational

1.3  

Sapna Shrivastava

Inspirational

प्रेम

प्रेम

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उम्र की दहलीज़ जब तीस-पैंतीस

के पार सरकती है,

तो नज़रे अशेष प्रेम से भी ज्यादा,

शेष दायित्व देखती हैं

आकांक्षाओं की आकाश गंगा,

नज़रों से धूमिल होकर

कर्तव्यपथ पर केंद्रित होती है


चाय की चुस्कियों के साथ 

लगते कहकहों की जगह, 

तब अखबार ले लेता है.

गीले बालों की बूंदें तब मन नहीं भिगोती,

वरन उन्हें जल्दी होती है सूख जाने की


प्रेमिल मान-मनुहार मोहित नहीं करते तब,

जिम्मेदारियाँ हम पर नज़रें जमाई रहती हैं

आज की खुशी तिरोहित हो जाती है,

कभी न आने वाले कल के सुख की चाह में


माना कि हर उम्र के अपने दस्तूर होते हैं,

अपनी जरूरतें होती हैं,

अपनी प्राथमिकताएं होती हैं,

पर प्रेम तो सीमाओं से परे है

फिर सीमाएं उम्र की हो या दायित्‍वों की


प्रेम नहीं छलता कभी भी दायित्‍वों को,

मुंह नहीं फेरता जिम्‍मेदारियों से,

नज़रें नहीं चुराता कभी भी अपने फर्ज़ से,

कंटक नहीं बनता कभी भी कर्तव्‍य पथ का


प्रेम भरी हल्‍की सी मुस्‍कान हौसला ही देती है,

दायित्‍वों को पूरा करने का

प्रेम भरा हल्‍का सा स्‍पर्श,

हर लेता है तमाम परेशानियों को

प्रेम से रंगे शब्‍दों में जादू है,

हर गढ़ को जीत लेने का


प्रेम से विश्‍वास है, 

शक्ति है,

हौसला है,

और जीवन भी है

तो कुछ पल प्रेम के सहेज लेना चाहिए,

उम्र के हर पड़ाव पर

कि चिर निद्रा में जाने के बाद भी, 

प्रेम अशेष ही रह जाता है

और दायित्‍व शेष ही रह जाते हैं


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