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Sapna Shrivastava

Tragedy

3  

Sapna Shrivastava

Tragedy

प्रेम की अपरिहार्यता

प्रेम की अपरिहार्यता

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कामनाओं के उठते ज्वार भाटों को संभालना 

जनते ही सीख लेती हम

देह की जरूरतों को 

बस आदम की संतुष्टि से जोड़ के देखा


क्षुधा से व्याकुलता से मर नहीं पाए कभी

अभिकांक्षाओं ने जन्‍म दिया नवीन ईप्सा को 


कुछ अनिवार्यताओं को कभी जरूरी समझा ही नहीं गया

तन के ताप के लिये जल की शीतलता ही बहुत समझी गई


प्रेम की अपरिहार्यता तन को भी भिगोती है

और हव्वा अपनी अपेक्षा के लिए आदम का मुंह जोहती है


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