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Manju Rani

Tragedy

3  

Manju Rani

Tragedy

मानव और दानव

मानव और दानव

2 mins
343


जन्म-मृत्यु के बीच झूलता मानव,

जन्म से न कोई देव न दानव ,

सब नव-जात शिशु

माँ की आँखों के तारे ।

फिर कैसे बने दानव, जानवर और राक्षस ,

कुछ तो घटा होगा ,

कुछ तो हुआ होगा ।

किस के अभाव में ऐसा हुआ होगा ,

प्रेम के अभाव में ,

संयम के अभाव में ,

अपनेपन के अभाव में,

या शिक्षा के अभाव में ,

या फिर रोटी के अभाव में ,

किसके अभाव में डगर भूल गए

मानव बनते बनते दानव बन गए ।

संगति भी अपना रंग दिखाती

किसी को सज्जन,

किसी को दुर्जन,

किसी को योगी ,

किसी को भोगी,

किसी को सभ्य,

किसी को असभ्य  

किसी को रागी ,

किसी को बैरागी

और किसी को मानव बनाते बनाते दानव बना देती।

कभी-कभी

पिज़्ज़ा बर्गर की भूख ,

मर्सिडीज की भूख,

वासना की भूख ,

महत्वाकांक्षाओं की भूख,

यह भूख मानव को दानव बना देती।

धक्का मार आगे निकलने की सोच,

असंतुष्ट मन से जीने की सोच ,

बिना कर्म किए फल पाने की सोच,

अहम सर्वस्व संजोकर रखने की सोच

यह सोच भी मानव को दानव बना देती ।

मन के रावण को मार ,

धैर्य के साथ

स्वयं की स्वयं पर जीत ,

दानव को मानव बना ही देती ।


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