STORYMIRROR

Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

4.0  

Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

"भलाई से मिली बुराई"

"भलाई से मिली बुराई"

2 mins
578


करते है,हम भलाई

मिलती है,हमे बुराई

वाह रे वाह ज़माने

क्या खूब मयखाने


जिनकी,की,भलाई

उन्होंने,की,पिटाई

अंधे पकड़ रहे है,

आजकल,कलाई


अंधे जला रहे है,

आज दियासलाई

अंधेरे हुए रोशन

सच ने ओठी,रजाई


बहरे सुन रहे है,

आजकल,शहनाई

सच को मिल रही,

आजकल,तन्हाई


झूठ की हो रही है,

आज,सबसे सगाई

आज मूक हो गए,

बोलने वाले लोग


बोलते हुए शहर से,

आवाज तक न आई

करते है,हम भलाई

Advertisement

r: rgb(255, 255, 255);">मिलती है,हमे बुराई


सच सिसक रहा है

झूठ हंस कर रहा है

सच से लोगो ने 

आज दूरी बनाई


इस झूठ ने आज

सर्वत्र सेंध लगाई

बेईमानी की कमाई

लोगो को खूब भाई


करते है,हम भलाई

मिलती है,हमे बुराई

तू याद रख,हमराही

जीतती अंततःसच्चाई


करता रह,भलाई

ईश्वर देगा,मलाई

मिले उन्हें,कामयाबी

जो सत्य के है,राही


करता रह,सदा भलाई

मिलेंगे आम्र तुझे भाई

बबूल लगायेगा तो,

मिलेंगे बबूल हरजाई


Rate this content
Log in

More hindi poem from Vijay Kumar parashar "साखी"

Similar hindi poem from Tragedy