ग़ैर की बाहों में
ग़ैर की बाहों में
सिसकता रहता हूँ मैं तन्हा रात रात भर ,
सारी दुनिया बेख़बर चैन से जो सोती है ।
इन आँखों में नींद आये भी तो आये कैसे ?
किसी गैर की बाहों में जो तू होती है ।।
दिल बहलाऊँ..कहीं और लगाऊं भी तो कैसे?
इस दिल को हर पल तेरी चाहत सी जो होती है ।
दिन तो गुज़र जाता है तेरी यादों के सहारे ,
हाल बेहाल तब होता है मेरा,
कमबख्त: जब ये रात जो होती है ।।
सिसकता रहता हूँ मैं तन्हा रात रात भर ,
सारी दुनिया बेख़बर चैन से जो सोती है ।
इन आँखों में नींद आये भी तो आये कैसे ?
किसी गैर की बाहों में जो तू होती है ।।
बेपनाह इश्क़ मैंने ..बेशुमार किया तुझसे ,
ये इश्क़ नहीं ..शायद गुनाह हुआ मुझसे ।
तेरी तस्वीर को ख़ुदा मान सज़दा किया ,
सिहर जाता हूँ वक़्त बेवक़्त ,
मेरे इश्क की तौहीन जो होती है ।।
सिसकता रहता हूँ मैं तन्हा रात रात भर ,
सारी दुनिया बेख़बर, चैन से जो सोती है ।
इन आँखों में नींद आये भी तो आये कैसे ?
किसी गैर की बाहों में जो तू होती है ।।
बेवफा नहीं तू ..पर बेपरवाह है तू ,
बाक़िफ़ मेरे दर्द -ए -हाल से है तू ।
क्यों तन्हा हूँ मैं..इस भरी महफ़िल में ,
पर ख़ामोश मेरे इस सवालात से है तू ।।
दिल के हाथों से मजबूर हूँ इस कदर ,
इस दिल को मुहब्बत तुझी से जो होती है ।।
सिसकता रहता हूँ मैं तन्हा रात रात भर ,
सारी दुनिया बेख़बर, चैन से जो सोती है ।
इन आँखों में नींद आये भी तो आये कैसे ?
किसी गैर की बाहों में जो तू होती है ।।