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Suresh Koundal

Romance Tragedy

4.0  

Suresh Koundal

Romance Tragedy

ग़ैर की बाहों में

ग़ैर की बाहों में

2 mins
234


सिसकता रहता हूँ मैं तन्हा रात रात भर ,

सारी दुनिया बेख़बर चैन से जो सोती है ।

इन आँखों में नींद आये भी तो आये कैसे ?

किसी गैर की बाहों में जो तू होती है ।।


दिल बहलाऊँ..कहीं और लगाऊं भी तो कैसे?

इस दिल को हर पल तेरी चाहत सी जो होती है ।

दिन तो गुज़र जाता है तेरी यादों के सहारे ,

हाल बेहाल तब होता है मेरा,

कमबख्त: जब ये रात जो होती है ।।


सिसकता रहता हूँ मैं तन्हा रात रात भर ,

सारी दुनिया बेख़बर चैन से जो सोती है ।

इन आँखों में नींद आये भी तो आये कैसे ?

किसी गैर की बाहों में जो तू होती है ।।


बेपनाह इश्क़ मैंने ..बेशुमार किया तुझसे ,

ये इश्क़ नहीं ..शायद गुनाह हुआ मुझसे ।

तेरी तस्वीर को ख़ुदा मान सज़दा किया ,

सिहर जाता हूँ वक़्त बेवक़्त ,

मेरे इश्क की तौहीन जो होती है ।।


सिसकता रहता हूँ मैं तन्हा रात रात भर ,

सारी दुनिया बेख़बर, चैन से जो सोती है ।

इन आँखों में नींद आये भी तो आये कैसे ?

किसी गैर की बाहों में जो तू होती है ।।


बेवफा नहीं तू ..पर बेपरवाह है तू ,

बाक़िफ़ मेरे दर्द -ए -हाल से है तू ।

क्यों तन्हा हूँ मैं..इस भरी महफ़िल में ,

पर ख़ामोश मेरे इस सवालात से है तू ।। 

दिल के हाथों से मजबूर हूँ इस कदर ,

इस दिल को मुहब्बत तुझी से जो होती है ।।


सिसकता रहता हूँ मैं तन्हा रात रात भर ,

सारी दुनिया बेख़बर, चैन से जो सोती है ।

इन आँखों में नींद आये भी तो आये कैसे ?

किसी गैर की बाहों में जो तू होती है ।।


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