रिश्ता.... निभाएगा कौन ?
रिश्ता.... निभाएगा कौन ?
मैं तुम से खफ़ा..
तुम मुझ से खफ़ा..
है किसकी ख़ता..?
यह आकर हमे बताएगा कौन?
ये हल्की सी तकरारें..
रिश्तों में दरारें..
खाईयां बीच की बढ़ती जाएं ।
इनको भर पायेगा कौन ?
कुछ तेरा वहम...
कुछ मेरा अहम..
रिश्ते नही करते इनको सहन..।
फिर अपना हमे बनाएगा कौन ?
मैं खामोश...
तुम खामोश...
और दुनिया अपने में मदहोश ।
खिल खिलाकर हंसाएगा कौन?
मुझे से रूठे तुम मौन...
तुम से रूठ के मैं मौन..
सांसे मौन धड़कन मौन ..।
यह चुप्पी तोड़ पायेगा कौन ?
मैं लापरवाह....
तुम बेपरवाह....
भावनाओं का उलझा प्रवाह..।
तो रिश्ता फिर निभाएगा कौन ?
ना तुम ही खुश....
ना मैं भी खुश...
बिछुड़ के दोनों हम हैं नाखुश...।
हाथ फिर बढ़ाएगा कौन ?
तुम मेरे अंदर ...
मैं तेरे अंदर....
अपने अंदर प्रेम समंदर...।
हमको यह समझायेगा कौन ?
गुस्सा त्यागो...
झगड़ा छोड़ो...
मुझ से अब तुम ..मुंह न मोड़ो..
गले लग जाओ ..ये शिकवे छोड़ो...।
आ कर हमें मनाएगा कौन ?