STORYMIRROR

Suresh Koundal 'Shreyas'

Abstract Romance Classics

4  

Suresh Koundal 'Shreyas'

Abstract Romance Classics

तेरे जाने के बाद

तेरे जाने के बाद

1 min
303

तेरे जाने के बाद 

तेरी कमी यूं मुझको खलती रही

इस बेजान जिस्म में

लेकिन सांस चलती रही 

सूख गए अश्क आंखों से

धड़कने मचलती रही

विरह की आग की तपन में

यह रुह पिघलती रही  


दिल किया तेरी रब से शिकायत करूं 

या फिर कोई उससे मैं शिकवा करूं 

मुहब्बत को कहते हैं रब की इबादत

फ़िर क्यों उस रब को मैं रुसवा करूं


ढल जाऊं उसी के सांचे में जिसमें 

चाहता है ढ़ालना वो मुझको जिसमें 

मगर किस्मत मुझी को यूं छलती रही


तेरे जाने के बाद 

तेरी कमी यूं मुझको खलती रही

इस बेजान जिस्म में

लेकिन सांस चलती रही 

सूख गए अश्क आंखों से

धड़कने मचलती रही

विरह की आग की तपन में

यह रुह पिघलती रही  


तेरी यादों की बारिशें

सोने ना दें रात भर

ये अश्कों से नम आंखें

टपकती है रात भर

तूफानोँ की राह में हूँ

मैं सूखा से तिनका


उड़ा जा रहा हूँ उधर

हवा का रुख है जिधर

तेरे आने की आस 

जो लगी है इस कदर

कि है गर्दिशों में नाव

पर ना डूबती मगर

फंसकर भी भंवर में वो तैरती रही


तेरे जाने के बाद 

तेरी कमी यूं खलती रही

इस बेजान जिस्म में

लेकिन सांस चलती रही 


सूख गए अश्क आंखों से

धड़कने मचलती रही

विरह की आग की तपन में

यह रुह पिघलती रही।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract