मेरे अंतर्मन की आवाज
मेरे अंतर्मन की आवाज
विद्रोह जरूरी है जब हद से ज्यादा अत्याचार बढ़ जाए।
अपना अंतर्मन भी दुखी हो जाए
अत्याचारों को सहन करने वाला भी दोषी कहलाए।
तो जरूरी है कि उस अत्याचार के विरोध में आवाज उठाई जाए।
जिस तरह से अंग्रेजों ने भारत पर अत्याचार कर कब्जा कर लोगों को परेशान कियाl जो विद्रोह की ज्वाला ना होती तो क्या हम स्वतंत्र हो पाते l
हमारे रणबांकुरे तरह तरह से युद्ध अहिंसा यात्रा ।
सुभाष चंद्र बोस जी की सेना और कितने ही नामी अनामी स्वतंत्रता सेनानी।
जिन्होंने दी अपनी कुर्बानी जिससे अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए तब जाकर अंग्रेजों के नाक में हुआ दम ।
और स्वतंत्र कर दिया भारत को,
मगर जाते-जाते ही अपनी चाल चल गये।
देश को दो हिस्सों में बांट गए।
इसी तरह जब होती हैं कुरीतियां घरों में।
किसी को तो उसका विद्रोह करना पड़ता है
विद्रोह करते हैं कुरीतियों को हटाते हैं।
तभी हम शांति से जी पाते हैं।
सही जगह में सही तरीके से विद्रोह कर हटाई गई कुरीतियां ,
<p> आपकी जिंदगी को आसान बनाती है।
अंधविश्वासों से आपको दूर भगाते हैं ।
सदियों से चली आ रही कुप्रथाओं को हटाने के लिए किसी को तो विद्रोह करना पड़ेगा।
क्यों ना हम ही उस विद्रोह के पहले विद्रोही बन जाए ।
मैंने तो ऐसा ही करा कर बहुत सारी कुरीतियों को भगाया है ।
विद्रोह तो करना ही पड़ता है विद्रोही भी कहलाना पड़ता है ।
मगर सही के लिए विद्रोही कहलाने में कोई तकलीफ नहीं है
मगर पीछे वालों को तो उनकी कुरीतियों से छुटकारा मिल गया है।
भले नीव का पहला पत्थर हम बने मगर शुरुआत तो किसी को करनी
पड़ेगी और शुरुआती शुरुआत करेंगे तभी फल भी मिलेगा।
कहती है विमला अपने हक को पहचानो । अपने अंतर्मन की आवाज सुनो
गलत को ना चलाओ विद्रोह करो।
थोड़ा समझा कर थोड़ा मना कर थोड़ा लड़कर मगर गलत का साथ कभी ना दो ।
तभी तुम जिंदगी में सुख पाओगे।
पुरानी कुरीतियों से छुटकारा पाओगे ।
कोई तुम्हारा दमन ना कर पाएगा और जिंदगी में स्व से आंख मिला पाओगे।