STORYMIRROR

Brijlala Rohanअन्वेषी

Tragedy

3  

Brijlala Rohanअन्वेषी

Tragedy

उम्मीद की छत

उम्मीद की छत

2 mins
335

एक छत उमीद की मेरी !

जिसपर मेरा संदेश लेकर रोज एक प्रेम की संदेशवाहिनी पंछी जाती !               

मगर पहरे थे छत पे इतने कि वह रोज खत बिन दिये ही वापस लौट आ जाती ।

वह पंछी मेरे महबूब को पहचान तो जाती अच्छी तरह से । 

मगर वह यही संकोच में पड़ जाती की संदेश पहुँचाएँ तो पहुँचाएँ किस तरह से ?

कभी देने को कोशिश भी करती तो वो ले न पाती !

कभी लेने की कोशिश भी करती तो प्रेमिन पंछी पत्र दे न पाती !

अफसोस! हाय किसको अब मैं कोसूं?

जब किस्मत साथ न हो तो क्या करिश्माई जादू देखूं ? 

सही पते पर पहुँचकर भी सही पते पर पहुँच न रहा !      

मेरी उम्मीद की छत वही बची थी आखिरी मेरी !        

जिस विरह में मैं तड़प रहा क्या तड़प रही होगी विरहनी मेरी !

एक दिन उबकर पंछी ने लांघ दी अपनी सीमाएँ ।        

मुझे व्याकुल देख वह थी खत पहुँचाने को अति - आतुर!   

सबके सामने ही उसने अपना पैगाम दे दी !

प्रेम का परिणय - पत्र पढ़ दी उसने वह पंछी बहादुर। 

बेचारी अभागिन पंछी को दरिंदों ने पंख काट दिये !       

अब वह कैसे मेरी प्रेयसी का खत लेकर आये ??       

दरिंदें दो दिलवाले को कैसे जुड़ते देख सकते थे ?        

कत्ल कर दिया उसने पंछी का नहीं !

कत्ल कर दिया मेरी दिल को दिल से जोड़ने वाले तार का ।

बैठा नेपथ्य में मैं दिन- रात क्षितिज की ओर निहारता ।    

काश ! वो लौट आती पंछी ! काश ! वो लौट आती !      

अपने साथ वो मेरी धड़कन के स्पंदन को भी ला पाती ।    

वही अनंत में बैठकर देखता रहता उस अनजान उम्मीद की छत की ओर !  


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy