*एक और पेशाब कांड*
*एक और पेशाब कांड*
वे पेशाब करते आए हैं सदियों से उन पददलितों पर ,
बहाते आये हैं वे अपनी गंदगी कभी वर्ण, कभी धर्म तो कभी जाति के नाम पर,
उन्हें मालूम है कि ये अमानवीय है !
मग़र फिर भी वे अपनी गंदगी दूसरों पर आज भी बहा रहें हैं,
क्योंकि उनके पुरखे उन्हे विरासत के रुप में यही छोड़ गये हैं!
वे सब सदियों से ऐसा ही करते आए हैं!
उन निरे निर्लज्ज लम्पटों को इसी में उनका पुरुषार्थ दिखता है!
अब उन्हें समझाने की जरूरत है कि कालचक्र बदल गया है,
हे पददलितों तुम्हें आह्वान है कि मोड़ दो उनके योनि को उसके मुख की ओर!
बहुत सह लिए दासता अब नहीं और !