मेरा ठिकाना
मेरा ठिकाना
अपने हिस्से की दुनिया छान मारने के बाद
दर-दर भटकते हुए मैंने पाया है कि
मेरा ठिकाना कहीं नहीं है;
सिवाय तुम्हारे पास के!
मेरा कहीं आश्रय नहीं
ठिकाना नहीं!
'नियति के निष्ठुर नियम' ने कितना कुछ बदल चुका है हमारे संबंधों को
असीमित गलती करने की छूट थी मुझे तुम्हारे पास
और वह गलती भी क्या!
उन गलतियों को माफ़ कर गले लगाने की सहृदयता भी तुम न जाने कहां खोती चली गई!
और आज मेरी गलती हमारे रिश्ते पर भारी पड़ रही
यद्यपि इसमें अपराध जैसा तो कुछ भी नहीं!
मैं तब भी स्वीकार करुं कि
मेरा कहीं ठिकाना नहीं
वह झुकी हुई डाली और लता जिसपर मैंने तुम्हें प्रणय निवेदन किया,
गहरे संकेत देती है
कि प्रेम एक-दूसरे के प्रति मन के सारे मैल त्याग कर झुककर संपूर्ण समर्पित होने है!
दरअसल हमारा ठिकाना यहीं, एक -दूसरे की बाहों में है।

