कुछ बातें खुद से
कुछ बातें खुद से
मुझे पता है तुम अपनी अदाओं से कितनी प्रसन्न हो,
हमसे ज्यादा उन पर भरोसा करते हो जो
आगे जा के तुम्हारे दिल तोड़ देते हैं।
बहुत मिले थे दोस्त मुझे भी,
जो पहले-पहले तो पूरी हक जताते हैं एक अच्छे दोस्त होने का
पर बाद में जरूरत होने पर ही हम याद आते थे।
और हां ठीक वैसे ही मेरा भी एक व्हाट्सएप ग्रुप था "हमेशा के लिए सबसे अच्छा दोस्त " वाली
पर पता नहीं क्यों आज-कल संदेश आने बंद हो गया है।
मैं न अब बहुत डरता हूँ
की शायद मेरी बातों से किसको बुरा ना लग जाए,
पता नहीं क्यूं हर छोटी-छोटी बातों को पकड़ के क्यों बैठ जाते हैं।
और वहाँ से शुरू होती है किसी नागिन की एंट्री,
और गलतफहमी का भूत शुरू, जिसका कोई अंत नहीं।
वक्त के साथ साथ मैंने ये सीख लिया की हर चीज की हमेशा हैप्पी एंडिंग नहीं होती यार।
इस भीड़ से बड़ी दुनिया में हर किसी को यहाँ अपनी ही पड़ी है,
कौन , क्या, क्यों, किसलिये, ये कर रहा है कुछ नहीं जाता।
वक्त के इस पहिए ने वक्त के साथ-साथ हर चीज को बदल दिया है।
आज ये जो तुम्हारे अपने कहते हैं वही आगे जा कर तुम्हारे पीछे चुटा डालेंगे,
हर किसी को इतनी जल्दी सब कुछ बोलना,
पूरी तरह से से घुल मिल जाना अच्छा नहीं है यार,
हर किसी का इरादा यहां हम सा ठीक नहीं होता है,
हां जानता हूं मैं दोस्त बनाना अच्छा लगता है तुझे पर जरा देख के।
यार सुनना,
मैं नहीं चाहता की तुम्हें
कोई हर्ट करे,
बस इसलिये
बाकी जो करना है तू कर ले।
