तू लड़की है
तू लड़की है
वो कहते हैं, तू लड़की है
शाम ढले घर से क्यूँ निकलती है ?
क्या तू नहीं जानती है,
अंधेरों में इंसान की खाल में भेड़ियो की आत्मा पलती है?
असम हो, गुजरात हो, या हो दिल्ली,
गिन ले सारे कांड , वो हो चाहे कन्या कुमारी से लेकर कश्मीर की कोई भी गली।
नहीं है सुरक्षित तेरा सम्मान।
हर जगह नोचे जा रहे है तेरे कपड़े , किया जा रहा है तुझे लहू लुहान।
अपनी हद को समझ और हो जा घर में कैद।
18 की होते ही कर दूंगा तुझे विदा देकर दहेज।
यही एक उपाय मुझे समझ आता है , इससे ज्यादा कोई जोखिम न मुझसे झेला जाता है।
मैं पूछती हूँ -पापा और भैया !
मैं जानना चाहती हूँ चाचाजी, मामाजी, ससुर जी,और सइयाँ !
या बता दे मुझे मेरे परिवार या आसपड़ोस का कोई भी मर्द।
क्या तुम भी ऐसा ही व्यवहार करते हो? लड़की देखकर उस पर बुरी नज़र धरते हो?
क्या चाहते हो करना उस पर प्रहार एवं बलात्कार?
यदि नहीं तो क्यूँ इंसान के अंदर बसे उस भेड़िए से हो भयभीत?
करो कोशिश, संसार को बनाओ स्वर्ग,
आज नहीं तो कल होगी अपनी जीत ।
किया है अगर प्यार तुमने अपनी सोन चिररैया को,
दिया है सम्मान अगर अपनी माता और भार्या को,
तो न डरो , न करो ऐसी बातें।
साथ दो हमारा, ताकि न हो सके ये वारदातें।
आयु , स्वास्थ्य या कोई स्थिति,
न ही थी ,न ही है रुकावट ,बदलने में ये परिस्थिति।
हमें बचपन से जो घर और पाठशाला में सिखाया गया है ,
लक्ष्मी बाई की जीवनी और जीजाबाई की आत्मकथा को कंठस्थ कराया गया है।
उसको आज चरितार्थ करने का समय आया है।
हम बेटियाँ , हम पत्नियाँ,हम ही माता हैं।
हम बहने भी, हम भाभी, चाची, मामी , काकी और बुआ हैं।
समय पड़ने पर हम परिवार , समाज और देश की रखवालियाँ हैं।
फिर क्यूँ हमे ये मिथ्या अपराध बोध कराया जा रहा है ?
"तू लड़की है, शाम ढले घर से न निकल"
ऐसा बतलाया जा रहा है !
