STORYMIRROR

तृप्ति वर्मा “अंतस”

Tragedy

4  

तृप्ति वर्मा “अंतस”

Tragedy

कृत्रिम

कृत्रिम

2 mins
46


तुम नयी-नयी तकनीकों से 

यूँ अपना रूप सजाते हो

नाना प्रकार की क्रीमों से 

श्यामलता दूर भगाते हो 

कभी बड़े होंठ के फ़ैशन में

तुम दूर देश हो आते हो 

कभी कमर दिखाने को पतली

पसलियाँ , उदर कटवाते हो

चेहरे से उमर ना दिख जाए 

तुम फ़ेस लिफ़्ट करवाते हो 

फिर बात कहीं ना खुल जाए 

मोटा पैसा भर आते हो

कभी बाल झड़े, कभी दांत गिरे

ये तो प्रदत्त है प्रकृति के 

तुम अपनी ओछी बातों से 

क्यूँ प्रकृति से लड़ जाते हो

है नाक तुम्हारी मोटी-सी 

क्यूँ इसको तुम छँटवाते हो? 

है रूप तुम्हारा मन मंदिर

तुम झांकी पे मिट जाते हो?

इस देह से बनती छब तेरी 

प्रयोगशाला क्यूँ इसे बनाते हो? 

अपने अंतस के  सौंदर्य को 

क्यों पहचान ना पाते हो? 

तुम धनी वर्ग, तुम हो स्वच्छंद

क्यूँ उसको नही भुनाते हो?

सुंदरता के परिमाणो को 

क्यूँ छद्म रूप सिखलाते हो?

भाँति-भाँति के छल करके 

क्या दुनिया को दिखला दोगे?

अपनी इस थोथी सोच से तुम

नव पीढ़ी को भटका दोगे। 

चलो मान लिया तुम्हें स्वार्थ प्रिय

पर खुद को क्या तोहफ़ा दोगे? 

जब देखोगे अपना चेहरा, 

हर बार कराकर रूप नया 

क्या दर्पण को झुठला दोगे? 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy