अंधेरे
अंधेरे
एक हकीक़त थी या था सपना?
देखकर हमको दूर हमसे हटना
ये वो ही शख्स है होता नहीं यकीन
क्यों कर बदल जाता है कोई इतना?
कल ही की बात है जब हुई मुलाकात
ये बात और है न हो सकी कोई बात
नज़रों को पहचान लिया नज़रों ने
मन के भाव को जान लिया आँहो ने
बस एक ही ख़याल दिमाग में रहा
इस तरह कैसे कोई बेवफा हुआ ?
रात आयी तो जलाया नहीं दिया हमने
अंधेरों ने बढ़ कर धीरे-से कहा कानो में
-"हमसे न डरना तुम कभी-भी राहों में,
घर में तुम्हारे और सूने कमरों में
बना ली है अब हमने जगह उनमें
जहां जाओगे वहां पाओगे हमें ही
ये वो रात है जिसकी कोई सुबह नहीं ।"

