पुराना कोट
पुराना कोट
सर्दियों की आगमन की आहट हुई
दिल में एक तरावट हुई
गर्मी से हालत थी ख़राब
एसी और कूलर की दौड़ पर
अब लगेगा अल्पविराम,
घर के संदूक खुलने का है मौसम
निकलेंगे स्वेटर ,शॉल और कार्डिगन
और निकलेगा वो पुराना कोट,
ये कोट बहुत ही पुराना है
क़ैद इसमें दादाजी का जमाना है
इसमें उनकी ख़ुश्बू बसी है
घिस गए है धागे इसके
बेरंग पड़ गए है बटन
तह की निशानियाँ जमी है
धूप लगेगी इसे इस साल भी
जायज़ा होगा इसका बारी-बारी
महसूस करेंगे वो हक़
जो इस कोट से होकर
जाता है हमारी वंशावली तक!
पापा याद करते है अपने पिता का स्नेह
बुआ जी अपनी याद का क़िस्सा सुनाती है
याद करते है बचपन से जवानी तक का सफ़र,
फिर बँटवारे की बात आती है
दोनो में तकरार हो जाती है,
और हो जाती है बोलचाल बंद
हम बच्चे तब भी कोट को लेकर
नाचते-झूमते है घर में
फिर माँ उस कोट को पुनः
सलीके से तहाकर संदूक में जमा देती है,
कुछ दिन में बुआ और पापा साथ हो जाते हैं
यही सिलसिला सालों से चला आ रहा है
मेरे घर में , मेरे देश में
हर साल कोई पुराना कोट निकलता है
क़िस्सा लेकर
माँ की तरह ऊपरी शक्तियाँ
एक पुराने कोट को धूप लगाती है
हम लड़ते-झगड़ते , ताने देते हैं
फिर जब कोट बक्से में चला जाता है
सब शांत हो जाता है मानो कुछ हुआ ही ना हो।