प्रेम
प्रेम
कल्पना मात्र से ही शिथिल हो जाती हूँ
कैसा होता होगा अनुभव तुम्हारा?
तृप्ति अपार मिलती होगी,
तुम्हारे होने पर मोक्ष की चाह भी मिटती होगी,
बोझ काया का नहीं होता महसूस तुम्हारे होने पर।
कैसा होता होगा अनुभव तुम्हारा?
सभी भौतिकताओ से परे,
मेरे अंतस की अग्नि को शांत करते हो तुम।