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तृप्ति वर्मा “अंतस”

Abstract

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तृप्ति वर्मा “अंतस”

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घर

घर

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अपना घर बड़ा ख़ास होता है

निजता का अहसास होता है

ईंट-ईंट में होता है विश्वास 

सीमेंट में लगा प्रयास होता है


घर के आँगन में अपनी आत्मा

बगिया में दीर्घ उच्छ्वास होता है

अंधेरे कोनों और कोठरी में

छिपी होती है कई गुत्थियाँ

दीवारों में आत्मविश्वास होता है


खिड़कियों और छज्जों से

होता है आवागमन विचारो का

इनकी उपस्थिति में

विनम्रता का आभास होता है 


घर की हर नाली है महत्वपूर्ण 

मन-मलिन का निकास होता है

हर नलके के रूदन में

आत्मशुद्धि सा त्रास होता है


दीवारों पर टंगी हुई फ़ोटो,

हस्तशिल्प और सजावट

रचती है चरित्र घर का

पुराने मेज़, कुर्सी, बर्तन

सबका अपना इतिहास होता है


ठंड में ठिठुरते सफ़र में गर्माहट

बरसात में भीगते को साया

और जलती दोपहर में घर पर

शीतलता का निवास होता है

घर में छुपा माँ का मातृत्व और

पिता का आशीष, साक्षात होता है।


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