Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Anju Singh

Abstract

4.5  

Anju Singh

Abstract

" दहल़ीज "

" दहल़ीज "

2 mins
117


उम्र की दहल़ीज पर आकर

अब जाकर एहसास हुआ

जीवन के इस अंतराल में

हमनें बहुत कुछ खोया

 बहुत कुछ है पाया


मन की दहल़ीज तो ख्वाहिशें बन

तितलियों के संग उड़ती है

आसमा के इंद्रधनुषी रंगों के संग

यूं ही विचरती है


तन की दहल़ीज सीमा में रहती

हिदायतें ,फर्ज ,जिम्मेंदारी निभाती

समाज के बंधन में बॅंधी रहतीं

कभी अधूरी सी यूं खड़ी रहती


वक्त की दहल़ीज पर 

कभी हम रुक जाते हैं

कभी फैसलों के समक्ष

मूक बधिर हो जाते हैं

अपने कर्मों के जाल में

खुद ही हम फॅंस जाते हैं


घर की दहल़ीज पर खड़े होकर

कई चिंताएं सताती हैं

कभी घर के अंदर 

कभी घर के भीतर इंसान

बीच में ही फंस जाता है


मायकें की दहल़ीज

लड़कियों के लिए

बेहद अज़ीज़ होती है

सपने कई बुनती हैं

उड़ाने नई भरती हैं


ससुराल की दहल़ीज पर

मां के संस्कारों को ओढ़

आती हैं बेटियॉं

नए रूप में फिर से

ढल जाती हैं बेटियां


आंखों की दहल़ीज पर

कभी सपने सुहानें आते हैं

कभी उदासी और दु:ख में

आंसू भर जाते हैं


पलकों की दहल़ीज पर

इंतजार सब ने देखा है

ए जिंदगी तुझ पर 

हमनें तों एतबार रखा है


इश्क की दहल़ीज पर

कभी लड़खड़ाते कभी चलते हैं

कभी गिरते कभी संभलते हैं

कभी आग को भी पानी समझते हैं


यौवन की दहल़ीज पर

धैर्य और विवेक का 

दीपक जलाना पड़ता है

मन हताश निराश ना हो कभी

इसके लिए वर्चस्व 

कायम रखना पड़ता है


दिल की दहल़ीज 

खुशी में दिखाती कई रंग

और मुसीबत व दु:ख में

हो जाती है तंग


जिंदगी की दहल़ीज पर

जब शाम की आहट होती है

मन की ख्वाहिशें थम जाती है

तलाश सुकून की बढ़ जाती है


मौत की दहल़ीज पर 

खड़ा शख्स़ ही बता सकता

जिंदगी की तलब क्या होती है


औरत को मिलता मशवरा

रहनें को आंगन की दहल़ीज पर

सोचों कौन कितना टिक पाता है

किसी भी दहल़ीज पर


शब्दों की दहल़ीज पर

जाने क्या क्या लिखतें हैं

कभी कागज कोरा रह जाता है

कभी बहुत कुछ लिख जाते हैं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract