" ये कैसा बंधन है "
" ये कैसा बंधन है "


जीवन में इंसान
चाहे अनचाहें
ना जानें कितने ही
बंधनों में बंधा रहता है
कभी अपनों से नाता तोड़ता
औरों से नाता है जोड़ता
दिखावे का जीवन जीता है
बेबस लाचार हो जाता है
अनचाहें रिश्तो में बंध जाता है
एक स्त्री और पुरुष
जब जुड़ जाते हैं
घर- द्वार की गृहस्थी में
बंध जाते हैं वों
जिम्मेदारियों के बंधन में
मां से एक शिशु का रिश्ता
स्नेह कोमल सा है यह बंधन
दोनों जुड़े हुए रहते
एक प्यारें अनमोल बंधन में
इंसान के जीवन में
सुख दु:ख आते जाते हैं
खुश दिखने के लिए वो
अपनें ऑंसू भी छुपातें हैं
कुछ ऐसे बंधन में बंध जाते हैं
कुछ ऐसा भी नाता है
प्यार और स्नेह से
मन से मन बंध जाता है
यह दोस्ती कहलाता है
चाहे कोई भी हो रिश्ता
यह तभी तक है निभता
जब वह मजबूत
विश्वास की डोर से है बंधता
हर संगीत प्रेमी
कई धुनों को सजाते हैं
राग रंगों के कई धुन
सुरों में बंध जातें हैं
तब संगीत बन जाता है
आसमां का चाॅंद
कितना है खुबसूरत दीखता
एक अकेला मोहक चाॅंद
झिलमिल तारों से बंधा रहता है
जीवन में सब का रिश्ता
बंधा हुआ है साॅंस से
जग में गरीबों का मन
बंधा हुआ है आस से
संसार के बंधनों से मुक्त हो
इंसान योगी बन जाता है
एक बंधन टूटता है
तो दूसरा बंध जाता है
कितनें ही बंधन बिना मतलब के
यूं ही बंध जाते हैं
बंधनों में बंध जाना
कभी प्यार की धुरी
और कभी मजबूरी है
इंसान मुक्त होना चाहता है
फिर भी वह बंध जाता है
कहीं किसी बंधन में
शायद यही जीवन है
ना जाने कितने ही बंधनों में
बंधी रहती है जिंदगी
इंसान मुक्त हो जाता है
एक दिन साॅंसों के बंधन से।