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तृप्ति वर्मा “अंतस”

Abstract

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तृप्ति वर्मा “अंतस”

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प्रतिबिंबित करता ये जीवन

प्रतिबिंबित करता ये जीवन

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कुछ छिपता-सा या दिखता-सा

या मुझ को कुछ बतलाता-सा

है कर देता बेचैन मुझे 

प्रतिबिंबित करता ये जीवन

ये कभी फूल, तो कभी स्वप्न

और कभी-कभी अनुशासन-सा

है कर देता बेचैन मुझे…..


ये कभी उदास, कभी बदहवास

और कभी-कभी एक अजब प्यास

नैनो में जल से संचित मेघ

या होठों पर रस-सी मिठास

है कर देता बेचैन मुझे….


मन के गलियारे में झाकूँ

तो पाती हूँ मैं खुद को पास

है एक प्रश्न हकलाता-सा

है एक प्यास तड़पाती-सी

ये एक पहेली या गायन

ये है उल्लास या है क्रंदन 

जो कर देता झंकृत तन-मन

है कर देता बेचैन मुझे

प्रतिबिम्बित करता ये जीवन।


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