तू कहे तो
तू कहे तो
तू कहे तो छोड़ दूं सारी सारी यादें मेरी
जो बचपन की सुनाती है मुझे अपनी ही कहानी
तू जो कहें छोड़ दूं ओ मायके का आंगन
जो आज भी हे बुलाता मुझे प्यार से
तू जो कहे छोड़ दूं ओ पहचान मेरी
जो थी तुझसे मिलने से पहले मेरी
हूँ कहाँ मैं आजकल जानूँ जानूँ ना ये मेरे सजन
है बटीं हुई दो दहलीजों में जिंदगी मेरी
ना छोड़ पाऊँ पूरा और ना अपना सकूँ ये भी शायद पूरा
हाँ मगर तेरे लिए ही है मैंने कुछ कुछ तो छोड़ा
छोड़ी आदतें ,छोड़े सपने अपने
छोड़ी जिद या कुछ चाहते
छोड़े माँ बाप और उनकी हसरतें जो मुझसे थी कभी
और कुछ जो भी बाकी रहा
छोड़ दूं ओ सबकुछ भी तू जो कहे --

