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saru pawar

Abstract

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saru pawar

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प्रिय अतित..

प्रिय अतित..

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मुलाकात तुमसे आजकल..कम ही होती है

ऊन दर्द की गलियों में भटकना मैंने छोड ही दिया है

पलटती नहीं वे पन्नै अश्को सें भरे डायरी के..

फिर दर्द सेहना बडा कठिन सा होता है.

जरा ज्यादा ही बेशर्मसी ,बेमुर्रवत सी 

पेश आती हूँ आजकल..

डर के...बस आँसू बहाना मैंने छोड ही दिया है

हाँ सिखा तो तुम्हारे ही दौर से है उभरना

घाँवो को आपने ही है ताकत बनाना

बडा बैगरत है ऐ जमाना

तुमने ही है..दिखाया था सच का आईना..

यहीं फिर,सीखा मैंने होशियारी से जीना

ए ..अतीत रेहना अब बंद ही आलमारी में

मुझे हैं अब बस मुस्कुराके जीना..


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