बहके जब कदम
बहके जब कदम
सपनें जिनकें कुछ नहीं
हासिल उनकों मंजिल नही
बहके जब कदम...
हो जाए सब तितरबितर..
सुनों सुनाऊ तुम्हें कहानी..
...राहतों का दौर था
बचपन तो खुशहाल था
कैसे कहाँ फिर हूँवा अँधेरा
नशेने है उसको छूआ
आदसे फिर ओ बेजार हूँआ
ओ पूरा बरबाद हूँआ
खो बैठा ओ हर सपना
रहा न,होश फिर खुदका
तो रेहता कैसे फिर सपना भी
आज बरबाद हूँआ वो चिराग
लौ..दिलों में हैं जगा रहा
कर आवाहन औरों को
नशे सें हैं बचा रहा
अब ख्वाँब हैं उसका
कुछ नया..
नशा मुक्त हो हर युवा..
