निर्मल मन
निर्मल मन
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सुंदर कितने ए मन हैं
ना छल ना कपट इनके अंदर है
ना भेदभाव छूता इनको
हर धर्म इनके दोस्ती में शामिल है
रंग से ना रुप से
ना जाती ना धर्म से
बचपन जीता हैं बस ..
दोस्ती से दोस्ती तक ..
निर्मल, निःच्छल, अल्हड़ ,कोमल
खिलखिलाता हैं जो हर मोड़ पर..
