औरत जानती है..
औरत जानती है..
बिखरा हर तिनका समेटना..
जानती है दायरों में रेह ..
संभालना अस्तित्व ..
संभलना भी है जानती , तुफानों में
कभी पहिय्या बनती, कभी पतवार
लगाती पार अपना घर संसार।
बिखरा हर तिनका समेटना..
जानती है दायरों में रेह ..
संभालना अस्तित्व ..
संभलना भी है जानती , तुफानों में
कभी पहिय्या बनती, कभी पतवार
लगाती पार अपना घर संसार।