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saru pawar

Abstract

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saru pawar

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औरत जानती है..

औरत जानती है..

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बिखरा हर तिनका समेटना..

जानती है दायरों में रेह ..

संभालना अस्तित्व ..

संभलना भी है जानती , तुफानों में

कभी पहिय्या बनती, कभी पतवार

लगाती पार अपना घर संसार।



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