यूँ ही नहीं आजादी आई..?
यूँ ही नहीं आजादी आई..?
सुनो मेरे भावी संतानों
यूँ ही नहीं देश में आजादी आई
मेरे जिगर के टुकड़ों ने जान गवाई
कितनो के जीवित चिते जले
कितने झूले फासी के फंदे पर
जाने कितने गुमनाम हुए आजादी के नाम पर
फिरंगियों के विभत्स क्रूर अत्याचार
अब भी आँखों में तैर आते हैं
बहुत कुछ गवाया है आजादी के नाम पर
कितनों ने माँग का सिंदूर धोया,
कितनों के ख़्वाब टूटे
कितनी माताओं के कोख उजड़े हैं
कितनी मासूमों के सर से पिता का हाथ उठा
सहते सहते जब यातना की अति हुई
विरोधों का स्वर तब मुखर हुआ
जब खोई आजादी की कीमत समझे
तब तकवारें सबकी खींच आई बाहर
किसी ने खेतों में कारतूस बोये
किसी ने जगाने का भार लिया संभाल
करो'फूट डालो राज करो'
जब विदेशियों के इस मंत्र को सबने जाना
अब नहीं बिखर के रहना है मन में ठाना
होने लगे वार पे वार, कोड़े हंटर करतूसों से प्रहार
काला पानी /आजीवन कारावास
साइमन वापस जाओ नारे पर पंजाब केसरी पर बूटों से प्रहार
बस, और कितना सहते हमारे लाल अत्याचार
आँचल भी था लहू से लाल
फटी जाती थी इनके दर्द से छाती
उठे तब भगत, राजगुरु, बिस्मिक चंद्रशेखर और पाल
बोस ने भी भार सबमें भरपूर जोश
खून के बदले आजादी दिल्ली चलकर सारी योजना बना ली
आखिर आजादी की कीमत सबने जानी ।
मेरे भावी कर्णधारों, ना खोना इस आजादी को
अब ना कोई भरत मिलेगा ना कोई नया सावरकर आयेगा।