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ritesh deo

Abstract

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ritesh deo

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कह जाते

कह जाते

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वो कहते नहीं फिर भी कुछ कह जाते हैं

जख्म चाहे लाखों हों फिर भी सह जाते हैं

खामोश वो रहते हैं ज़माने में

किस्सों की बात छोड़ो, इशारों ही इशारों

कहानी कह जाते हैं

वो कहते नहीं फिर भी कुछ कह जाते हैं।


. हक़ तो उनका भी बनता है

लड़ने का, मुंह खोलने का

वो फिर भी चुप रहते हैं कि जीतता है

जमाना तो जितने दो, क्या हुआ के

हम हार गए, दो लफ्ज़ कहते कहते वो

समां बाँध जाते हैं


वो कहते नहीं फिर भी कुछ कह जाते हैं

वो गूंगे नहीं जो बोलते नहीं

हालातों ने चुप रहना सीखा दिया

हल्का सा मुस्कुरा देते हैं वो इस बात पे

के पीठ पीछे दुनिया क्या सुनाती होगी


खिलाड़ी नहीं हैं फिर भी खेल जाते है

लाख बुरा कह लो झेल जाते हैं

वो कहते नहीं फिर भी कुछ कह जाते हैं।


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