क्या तुम वही हो...
क्या तुम वही हो...
क्या तुम वही हो,
जिसको मैंने चाहा था ...
थामा था हाथ उसका,
जब अकेला खुद को जाना था...
राह कठिन थी बड़ी,
वो भी गर्दिश में था,
मैं भी ...
सफर कटता गया साथ में,
एक दूसरे का जब सहारा था ...
जिंदगी के इस मोड़ पे,
क्यों अनजान दीवाना था ...
छूट गये साथ के लम्हे,
मौसम की तरह प्यार बदलना था ...
खुश थी मैं जब तू साथ था...
जी गई मैं जब तू साथ था...
मुस्कुराती हूँ मैं जब तू साथ था ...
जमाने से अब दिल में वीराना था...
कोशिश की बहुत फिर भी ...
अनजाने दर्द का असर जानलेवा था ...
क्या तुम वही हो,
जिसको मैंने चाहा था ...
थामा था हाथ उसका,
जब अकेला खुद को जाना था...
क्या तुम वही हो,
जिसको मैंने चाहा था ...
थामा था हाथ उसका,
जब अकेला खुद को जाना था...
क्या तुम वही हो,
जिसको मैंने चाहा था ...
थामा था हाथ उसका,
जब अकेला खुद को जाना था...