ख़ुद्दारी
ख़ुद्दारी
मन मेरा पूछे मुझसे बार बार
सजदा क्यों करे उसका कद्र नहीं जिसे तेरी
खुद्दारी की तौहीन क्यों हो कबूल तुझे
कसमों की, वादों की वह दुनिया
वह जुनून जवानी का- सब्ज़ बाग़ तुझे
दिखाए जिसने-मोहब्बत ठुकरा दी जिसने तेरी
आंखों में आंसू भर कर यूं , मांग न उससे भीख
परवाह न करे तेरी , नज़र जिसने तुझसे फेरी
आंसू न बहा, फरियाद न कर, इतना सीख
इज्ज़त न मिले, मोहब्बत रुसवा जिस रिश्ते में
बाइज्ज़त बरी होना उस रिश्ते से, तू भी ले सीख।
