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तृप्ति वर्मा “अंतस”

Tragedy

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तृप्ति वर्मा “अंतस”

Tragedy

निरर्थक

निरर्थक

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मैं हमेशा तुम में , उसे ढूंढती रही

हाँ!

मैं हमेशा तुम में उसे ढूंढती रही।

छाना ,खंगाला ,उठाकर ,पटककर देखा।

तुम्हारी आँखों में,तुम्हारी बातों में ,

और तुम्हारे क्रियाकलापों में,

देखनी चाही छवि उसकी।

नित नए बाण से छलनी कर,

मैंने तुम में उसको खोजना चाहा।

परत दर परत मैंने पलट कर देखी।

लेकिन तुमने खुद को डिगने न दिया ।

खड़े रहे लौह स्तम्भ की तरह

और कर लेने दी मुझे मेरी मानसिक तुष्टि।

मेरी खोज का उद्देश्य जानते हुए भी,

तुमने कोई दिखावा नहीं किया।

और न ही कभी किया मुझे भ्रमित।

हाँ! इतना ज़रूर कर डाला तुमने ,

मेरी इच्छाओ के सांचे में खुद को डाला तुमने,

और दे दी मुझे ,एक नयी खोज की वजह।

अब मैं तुम्हारे नए रूप में, पुराना रूप खोजती हूँ।

उस पुराने रूप की झलक पाने को व्याकुल हूँ मैं।

व्याकुल हूँ मैं अब तुम्हे पाने के लिए।

लेकिन अब तुम,तुम नहीं रहे,

तुम वो बन गए हो।

अब तुम्हे तुम जैसा रहना अच्छा नहीं लगता

तुम्हारे सपने है, तुम्हारे जीवन का उद्देश्य है।

तुम्हारी मंज़िले, आकाश को जाती हैं।

तुम्हारी गति, बादलो को नाप आना चाहती है।

तुम उस स्थान पर आ पहुंचे हो ,

जहां से तुम्हारी ज़िंदग़ी की उड़ान शुरू होती है।

वह पथ जिस पर तुम्हे मैंने ही भेजा था,

आज उस पथ पर तुम्हारी गाड़ी दौड़ती है।

सात घोड़ो के रथ पर सवार हुए जाते हो तुम,

जिसकी पदचाप भी मेरी आवाज़ को दबाती है।

एक दुनिया जो ख्वाबो में थी हमारे,

वो अश्वो के खुरो से उठी धूल के गुबार में

कहीं छिपी जाती है।

मैं यहाँ खड़ी पुकारती हूँ सांझ में ,

वहां तुम्हारी नयी सुबह तुम्हे बुलाती है।

मैं अपने स्थान पर जस की तस खड़ी हूँ।

मैं हिल नहीं सकती ,मैं डुल नहीं सकती,

मैं चल नहीं सकती,मैं फिर नहीं सकती,

मैं बंध चुकी हूँ,हाँ! मैं बंध चुकी हूँ ।

मुझे तुमने जो बेड़िया पहनाई थी ,

मैं उनमे कसी हूँ।

तुम सोचते हो बेड़िया गल कर हट जाएँगी?

इन बेड़ियों में जंग लग चुका है।

ये बेड़िया कर रही है अब मेरे पैरो को ज़ख़्मी।

मैं ज़ख़्मी हो चुकी हूँ।

हाँ! मैं हृदय से ज़ख़्मी हो चुकी हूँ।

छिल चुकी है मेरी आत्मा,

मैं घायल हो चुकी हूँ

मैं मर चुकी हूँ ,मैं मर चुकी हूँ ,मैं मर चुकी हूँ।

सिर्फ मेरी देह ज़िंदा है अभी,

दोष तुमको भी क्या दूँ?

दोषी तो मैं ही हूँ ।

जो हमेशा तुम में उसे ढूंढती रही,

हाँ! मैं हमेशा तुम में उसे ढूंढती रही।



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