ज़िन्दगी
ज़िन्दगी
झंझावातों से लड़-लड़ कर,
संभला हूँ मैं गिर-गिर कर!
कसर नहीं छोड़ी पत्थरों ने,
राहों में मेरी अड़-अड़ कर!
दर पर दस्तक दे रहे दर्द,
संग ग़मों के मिल-मिल कर!
जिसे बसाया दिल में अपने,
दिल तोड़ा दिल में रह-रह कर!
जिन्हें समझता था मैं अपना,
चले गए सब मुड़-मुड़ कर!
बदले में प्यार के जख्म मिले,
निखरा हूँ दर्द सह-सह कर!
दर्दे-ग़म को दबा सीने में,
खुश हूं खुशियां चुन-चुनकर!
हैरान है बेरहम जमाना,
जी उठा हूं मर-मर कर!