STORYMIRROR

Sumit sinha

Abstract

4  

Sumit sinha

Abstract

मैं... रोटी हूं

मैं... रोटी हूं

1 min
267

वक्त से मेरा

गहरा नाता,

कहीं मोटी,

कहीं पतली हूं,


मैं दो वक्त की रोटी हूं

कहीं अमीरों की थाली में,

घी में लिपटी 

मिलती हूं,


घर गरीबों के अक्सर,

साथ नमक के 

दिखती हूं,

मैं दो वक्त की रोटी हूं!


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract