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Sumit sinha

Abstract Classics Inspirational

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Sumit sinha

Abstract Classics Inspirational

रोटी

रोटी

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वक्त से मेरा

गहरा नाता,

कहीं मोटी,

कहीं पतली हूं,

मैं... दो वक्त की रोटी हूं !


कहीं अमीरों की 

थाली में,

घी में लिपटी 

मिलती हूं,

मैं... दो वक्त की रोटी हूं !


घर गरीबों के 

अक्सर,

साथ नमक के 

दिखती हूं,

मैं.. दो वक्त की रोटी हूं !


कहीं सुवासित 

स्वेद कण से ,

कहीं रंजित 

रक्त से होती हूं,

मैं.. दो वक्त की रोटी हूं।


बंटने पर मैं

प्यार बढ़ाती,

पल में भूख

मिटाती हूं,

मैं.. दो वक्त की रोटी हूं।


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