ईद और ईदी
ईद और ईदी
"दीदी"
"हां हसन, बोल ,क्या हुआ?"
"दीदी आज ईद है ।"
"अच्छा, इतनी जल्दी ईद आ गई ।अभी तो कितनी मुश्किल से कितने दिनों के बादघर में चूल्हा जला है ।तुम्हारे लिए रोटी बनाई है, खीर बनाई है, पूरी भी बनाई है ,सेवईयां भी बनाई हैं।चल आ,जल्दी से खा ले।"
"नहीं दीदी, मुझे ईदी चाहिए । मुझे ईदी दो।"
इतना कहता हुआ हसन दीदी के दुपट्टे के एक छोर को झूले की तरह खींचता हुआ झूला झूलने लगता है। गर्दन पर पड़े खरोंच के निशान छिपाते हुए दीदी हसन को डांटती है ।,,,,,"मत खींच दुपट्टा,,,,,मत खींच दुपट्टा,,,,"
भोला हसन यह नहीं जानता कि जिस दुपट्टे को वह खींच रहा है, उस दुपट्टे की लाज बेचकर ही तो आज तीस रोजों के बाद घर का चूल्हा जला है।अब उसकी दीदी उसको ईदी कहां से दे!!कहां से दे!