STORYMIRROR

Dipanshu Asri

Tragedy

4.5  

Dipanshu Asri

Tragedy

चरस

चरस

1 min
305


दम भर के आँखों को मीच के 

इस दुनिया से मैं तर जाऊ 

मैं कैसा युवा हूँ आज का ?

छोटी बातों से घबराऊँ 


नींद नहीं है , ना चैन है मुझको 

दो कश्त लगाकर मैं गाऊं 

कल की मुझको होश कहा हैं ?

कैसे खुद को मैं समझाऊं ?


ज़िन्दगी का अर्थ मैं क्या समझूँ?

कैसे खुद से ही लड़ जाऊं ?

चरस का मज़ा भी कोई सज़ा है<

/strong>

घर बैठे ज़न्नत को दिखाऊं 


यार दोस्त सब आते हैं अक्सर 

पूछते है मुझसे क्या माल है अंदर ?

हर किसी को लत मैं लगा जाऊं 

कैसा ये खुद ही जाल बुना हैं , कैसे मैं खुद को समझाऊं ?

 

सोचो मत ये तो खुल्ला है धंधा 

ख़ास क्या ? लेता हैं हर आम भी बंदा 

दोष किसका हैं मैं कैसे जानू ?

मैं ग़लत हूँ मैं ये कैसे मानू ?


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy