चरस
चरस
दम भर के आँखों को मीच के
इस दुनिया से मैं तर जाऊ
मैं कैसा युवा हूँ आज का ?
छोटी बातों से घबराऊँ
नींद नहीं है , ना चैन है मुझको
दो कश्त लगाकर मैं गाऊं
कल की मुझको होश कहा हैं ?
कैसे खुद को मैं समझाऊं ?
ज़िन्दगी का अर्थ मैं क्या समझूँ?
कैसे खुद से ही लड़ जाऊं ?
चरस का मज़ा भी कोई सज़ा है<
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घर बैठे ज़न्नत को दिखाऊं
यार दोस्त सब आते हैं अक्सर
पूछते है मुझसे क्या माल है अंदर ?
हर किसी को लत मैं लगा जाऊं
कैसा ये खुद ही जाल बुना हैं , कैसे मैं खुद को समझाऊं ?
सोचो मत ये तो खुल्ला है धंधा
ख़ास क्या ? लेता हैं हर आम भी बंदा
दोष किसका हैं मैं कैसे जानू ?
मैं ग़लत हूँ मैं ये कैसे मानू ?