दुश्मन या दोस्त
दुश्मन या दोस्त
जो दूर था मुझसे कभी यूँ ही
आज लगता मुझे वो अपना हैं
किस मोड़ पर हम खड़े हैं ?
किस मंज़िल पर कदम रखना हैं ?
जो बिछड़ा था कभी सालों से
आज उससे ही मुझे लड़ना हैं
सरफ़रोश हैं उसके इरादे
मीठी बातों से उसकी बचना हैं
अँधेरा हैं सामने मगर
मुझे सवेरे की राह को तकना हैं
मदहोश नहीं हम अपने गिरेबान में
मुझे कल फिर से रात को जगना है
ज़ोर जितना वो चाहे लगा ले
मुझे बस आगे बढ़ना हैं
हिम्मत को मेरी वो ना ललकारे
मेरा जोश इक बहता झरना हैं
लाखों जतन वो चाहे आजमाले
मुझे नाम देश के करना हैं
जितना दफा तुम पेंच लड़ा लो
आख़िर में तुम को भी मरना है।