मजदूर हैं हम
मजदूर हैं हम
हाँ ! मजदूर हैं हम ।साहब ! दर- दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं हम।
फिर भी हमें तुम कमजोर मत समझना अंदर से अपनी मजबूती के लिए मशहूर हैं हम।
चिलचिलाती धूप हो या कँपकपाती सर्दी, डटे रहते हैं हम पहनकर मेहनत की वर्दी।
काम से हम कभी न जी चुराते ,चाहे हमसे तुम जी- तोड़ खटवाते!
हड्डी- तोड़ मेहनत से बदन प्रस्तर की तरह हो गए हैं ,
पैरों में में छाले पड़ गए हैं !
फिर भी दो-जून रोटी के लाले पड़े हैं!
हालातों का हाल में किसे बताऊं !
कैसे जी रहा घूँट -घूँटकर मैं किसे सुनाऊं !
जैसे -तैसे उन मेहनत की अनमोल पैसों से शाम का हो जाता जुगाड़ !
लेकिन सुबह की निवाले की रहती बेसब्री से इंतजार!
मारा -मारा फिरता हूँ ;मैं
मगर करता नहीं मुझपे कोई सत्तावान ऐतबार !
देश के असली निर्माणाधार हैं ,हम
फिर भी अस्तित्व बिन निराधार हैं हम ।
एक ओर माल पूवे चाभ रहे चापलूसी करने वाले बहुरूपिये चोर ,
पौ-बारह कर रहे बेतुकी बकबक करनेवाले बकरे !
सब - मिली भगत में लगे बैठे हैं ,
अब कौन किसको पकड़े ?
कौन भोली!
दुधमुंही जनता को समझाये की देश अभी भी अपने अधीन पराधीनता की बेड़ियों में है जकड़े।
हाँ ! हम मजदूर हैं । साहब!
पर मजबूर हैं हालातों के ,कर्तव्य से फिर भी मजबूत हैं हम ।
गुरूर नहीं हमें अपनी मेहनत पर ,
मशहूर हैं हम मेहनत की रूखी -सुखी रोटी खाने के।
पर बहुत सह लिया हमने मदांध व्यवस्था के सत्ताधीशों का अत्याचार !
अपना अधिकार लेके रहेंगे ये हमने कर लिया विचार।
अब अपने हक की लड़ाई के लिए करेंगे हम हुंकार। ।