मेरा मक़ान
मेरा मक़ान
मुझे वक़्त कहा हैं जीने का
फ़ुर्सत से चाय को पीने का
वो मकान अभी भी खाली हैं
जहाँ बजती एक हाथ से ताली हैं
कभी गुज़रकर देखो हमारी गलियों से
कभी पूछकर देखो उन कलियों से
तुम्हें यादें बसी कुछ दिख जाएंगी
एक मुस्कान दबी सी मिल जाएंगी
वो कूचा बेशक पुराना हैं
वहा बीता मेरा ज़माना हैं
वो राम-राम और नमस्कार
वो सीधापन वो सरस व्यवहार
आँगन की तुलसी अभी भी हैं
वो दूध और जलेबी अभी भी हैं
बस रंग रूप कुछ बदल गया
वो सामान मेरा कही छूट गया
बच्चो का शोर जब सुनता था
बागों में मोर जब उड़ता था
वो खुलकर जीना भी क्या जीना था
जब बहता मेहनत का पसीना था
कभी दिवाली , कभी होली , कभी ईदगाह
हर इंसान से जुडी इक मीत का
मैं सीना से उसको लगाता हूँ
मैं आज भी वो गाने गाता हूँ
मैं आज भी वो गाने गाता हूँ।