STORYMIRROR

Dipanshu Asri

Tragedy Classics

4  

Dipanshu Asri

Tragedy Classics

मेरा मक़ान

मेरा मक़ान

1 min
293

मुझे वक़्त कहा हैं जीने का 

फ़ुर्सत से चाय को पीने का 

वो मकान अभी भी खाली हैं 

जहाँ बजती एक हाथ से ताली हैं 


कभी गुज़रकर देखो हमारी गलियों से 

कभी पूछकर देखो उन कलियों से 

तुम्हें यादें बसी कुछ दिख जाएंगी 

एक मुस्कान दबी सी मिल जाएंगी 


वो कूचा बेशक पुराना हैं 

वहा बीता मेरा ज़माना हैं 

वो राम-राम और नमस्कार 

वो सीधापन वो सरस व्यवहार 


आँगन की तुलसी अभी भी हैं 

वो दूध और जलेबी अभी भी हैं 

बस रंग रूप कुछ बदल गया 

वो सामान मेरा कही छूट गया 


बच्चो का शोर जब सुनता था 

बागों में मोर जब उड़ता था 

वो खुलकर जीना भी क्या जीना था 

जब बहता मेहनत का पसीना था 


कभी दिवाली , कभी होली , कभी ईदगाह 

हर इंसान से जुडी इक मीत का 

मैं सीना से उसको लगाता हूँ 

मैं आज भी वो गाने गाता हूँ

मैं आज भी वो गाने गाता हूँ।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy