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आ. वि. कामिरे

Abstract Tragedy

4.2  

आ. वि. कामिरे

Abstract Tragedy

क्यो हम बडे हुये ?

क्यो हम बडे हुये ?

1 min
389


उस दिन गया में था

कक्षा नौवीं में

बस फर्क था इतना

मैं पढ़ने नहीं, गया था पढाने

याद आये तब मुझे कुछ लम्हे


हर रोज देर होने पर चार सो मीटर कि दौड

और माली सर के वो कभी न भुली जानेवाली डाँट

फरक बस था इतना 

अब उसका भागीदार मैं था नहीं


मुझे तो सुधारकर अपनी गलतियों को

दिखाना है मेरे विद्यार्थीयो को मार्ग सही

हा याद आये मुझे तब 

पिच्छले बेंच पे बैठ के गपशप करना,


पढाई न करने कि वजह से

अपने टीचर से मार खाना

और वो सब बचपना

जो दिख गया मुझे तब

जब पढा रहा था मैं 


खुद को ही बनाके टिचर

लगता है जैसे कल ही कि बात हो

अभी अपने टीचर से खाया था मार

और इतनी हम कैसे बने टिचर

समझ में तो कुछ आता नहीं

लगता है जैसे कल ही कि बात हो


जब हर सब्जेक्ट मे पास होकर भी

इंग्लिश कि वजह से रहता हमेशा फेल में

और आज उसीमे स्पेशलाईज्ड हूं में

सचमे बचपन कितनी जल्दी बीत जाता है


जब बच्चे थे तब हमेशा बडे होने के सपने देखे

और आज जब बडे हो गये हैं 

हम खुद से ही ये सवाल हमेशा करते है

कि क्यों हम बड़े हुये.....?


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