मजबूरी
मजबूरी
ये कैसी मजबूरी
राधा कृष्ण बिन अधूरी
अक्सर प्यार में ये कैसी दूरी
होती न मुकमल ख्वाहिशें अधूरी
जाने यह कैसी मजबूरी
जग जाने यह बात पूरी
हीर रांझा बिन, लैला मजनू बिन अधूरी
तब भी दुनिया ने दर्द देने में कोई कसर न छोड़ी
जाने यह कैसी मजबूरी
प्यार में तड़पन, बिछुड़न हर आस अधूरी
दुख में अपनों की दूरी
चले जैसे दिल पर चाकू और छुरी
प्यार पलता मेरे दिल में हर पल
पर मिल न सके यह कैसी मजबूरी
तन्हा बैठ दिन रैन गुजारू
पिय मिलन का सांझ सवेरे दीप जला लूं
तब भी मिलन की आस अधूरी
इश्क मोहब्बत में यह कैसी मजबूरी
सही न जाए अब यह मिलो की दूरी
रब मेरे अब तो मिटा दे यह दूरी और मजबूरी
अब तो मिटा दे यह दूरी और मजबूरी।
