" श्यामा "
" श्यामा "


कहानी है श्यामा की,
एक श्यामा,
काली है,
कुबड़ी है,
एक लड़की,
दो पैरों से अपाहिज,
ना ठीक से चल सकती,
दो पैरों से रेंगती,
चली दर्शन करने,
गब्बर पर, माता के दर्शन करने,
हौसला बुलंद,
ना पैसे का ठिकाना,
ना खाने का,
भीख मांगती आगे बढ़ी,
माता के दर्शन करने,
हौसला उसका बुलंद,
एक श्यामा,
काली ,कुबडी लड़की,
ना पहचान सके,
लोग उसे,
गीत गाती आगे बढ़ी,
सब का मनोरंजन करते,
पर,
ना कोई मददगार मिला,
नवरात्रि की आठम थी,
वह गुप्त नवरात्रि थी,
माता के दरबार में,
भीड़
उमड़ रही थी,
ना किसी को दरकार,
ऐसे लोगों की मदद की!
अपनी मस्ती में दर्शन करके,
मां के पास हाथ फैलाते,
अपनी मन्नतें पूरी करने,
माता को चढ़ावा करते,
पुष्प, चुनरी और प्रसाद,
जीवन की ख़ुशियाँ मांगते,
पर,
एक श्यामा,
काली कुबडी,
हौसला उसका बुलंद,
मांगे मां के पास,
पैरों से रेंगती हुई,
अभी मंज़िल बाकी,
दूर है मां का दरबार,
गाती हुई श्यामा,
प्रार्थना करती,
मन की सुंदरता को, व्यक्त करने आई हूँ,
मैं अकेली तेरे दर पे ,कुछ मांगने को आई हूँ
जय माता दी बोलने आई हूँ
प्रणाम और वंदन करने आई हूँ