क्यूँ नहीं हिंदी से प्यार
क्यूँ नहीं हिंदी से प्यार


जब सब को है हिंद से प्यार
तो क्यूँ नहीं हिंदी से प्यार
जब सब को है यहाँ के खान-पान से प्यार
तो सब क्यूँ है बोली से मुँह फेरे यार
जब सब है लगाते यहाँ की मिट्टी को माथे पर
तो क्यूँ नहीं सजाते हिंदी को बिंदी बना चेहरे पर
सब है अपनाते यहाँ के पहनावे को खुशी से
तो क्यूँ कर दिया जाता है दरकिनार बोल-चाल से
सब करते है बड़ों का इज्ज़त सिर झुका कर
फिर क्यूँ खड़े हो जाते है मातृभाषा से मुँह फेर कर
सब करते है प्रतिस्पर्धा इसका अंग्रेजी भाषा से
तो क्यूँ न मिल कर बनाए उत्सव हिंदी का मन से!