मजदूर
मजदूर
जेठ की कड़ी दोपहरी में
वो शख्स ऊंचे खम्भों में चढ़ता है
अपने परिवार को पालने के लिए
वो लू के थपेड़ों में भी काम करता है
अक्सर जब काम के बीच में
हवा का एक हल्का सा झोंका आता है
पसीने से तरबतर हो चुके शरीर में तब
झोंका ठंडक का एहसास दिलाता है
गोधूलि बेला में जब
घर वापसी का समय हो जाता है
काम से थक चुके शरीर में तब
रक्त का नया संचार हो जाता है
काम से लौटने के बाद जब वो
थका-हारा घर वापसी में आता है
बच्चों को हँसता-खेलता देखकर
उसका चेहरा खुशी से खिल आता है
मेहनत और ईमानदारी से वो
अपना काम हमेशा करता है
पर इन गुणों के कारण उसके
घर का चूल्हा नहीं जलता है
ठेकेदार जिसके नीचे तले वो
मजदूर दिन-रात काम करता है
अपना उल्लू सीधा हो जाने पर वो
आप कौन है पर आ जाता है
जब कभी पैसों की
मुश्किल समय में जरूरत आन पड़ती है
तब उसके माथे पर
शिकन की लकीरें आन पड़ती है
जो मजदूर दूसरों की
मुश्किल वक्त में हमेशा मदद करता है
आखिर में उसके मुश्किल वक्त में
उससे ही मुँह मोड़ लिया जाता है
यकीन मानो तब खुदा भी
खून के आँसू रोता है
जब उसे उसकी
मेहनत की अदायगी नहीं होती है
मगर शायद खुदा भी
पैसों वालों के साथ होता है
तभी शायद पैसे वाले फलते-फूलते है
और मजदूर वहीं का वहीं रह जाता है...