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Shashi Aswal

Abstract

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Shashi Aswal

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लटें

लटें

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अचानक पढ़ते समय

मेरे चेहरे पर लटें लहराई

जैसे बिन बादल के

बरसात झमाझम आई

हवा का साथ पाते ही

आकाश को छूने की तमन्ना

कभी इधर कमर बलखाती

कभी उधर नैन-मटका करती

अचानक ठिठोली की आवाज़

गूँजी मेरे कानों पर

मौन होकर सुनने लगी

उनकी कही बातों पर

लटों को काफी गुरूर था

अपने इठलाने पर

केश से लड़ने को

आतुर थी जंग पर

मैं तो अकेले ही

नारी की शान बढा़ती

मेरा साथ पाते ही

नारी मंद-मंद मुस्काती(लटें)

खुद पर मत इतरा

कि घमंड आ जाए

आखिर तू तो मुझसे ही

लिपटकर साथ आ जाए(केश)

उनकी बातों से परेशान

मैं भी हैरान हुई और कहा

बहुत सुन तुम्हारी बातें

अब नहीं हो सकती बातें

लटें केशों के साथ मिलाई

आँखों से नीदें मिलाई।



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