STORYMIRROR

निखिल कुमार अंजान

Abstract

3  

निखिल कुमार अंजान

Abstract

तोड़ दूँ रस्मो रिवाज......

तोड़ दूँ रस्मो रिवाज......

1 min
214

तोड़ दूँ 

     रस्मों रिवाज

या फिर

     जागना छोड़ दूँ

भूला सा

     हूँ कुछ नहीं

पर अब

    याद कुछ नही

खामोश हैं

      ये निगाहें मेंरी

पर मेंरे

   नैनो में है आग सी

पल पल

     टूटता मै रहा 

न जाने क्यों

       अब तलक झुका नहीं

बात ये

    सिर्फ तुम्हारी नही

इस में है

     हर स्त्री की जिंदगी 

माफी मै

    सबसे पहले मांगता हूँ अभी 

बात है

    इज्ज़त पर

  और 

    इज्ज़त करना मुझको 

खुद आता नही

     शर्मिंदा हूँ या शर्मिंदा नहीं

जान कर भी अंजान बन सकता नही!



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract