नारी
नारी
मैं हूँ एक नारी
मुझे हक है अभिव्यक्त होने
मुझ पर लगाई है जो समाज ने पाबंदीयाँ
मुझे हक है उन पर बोलने का
हर वक्त क्यूँ लगते है सभी
मेरी आवाज़ को दबाने में
मुझे भी हक है आज़ादी का
फिर लोग क्यूँ मुझे बंदी बनाना चाहते हैं
मेरा भी है एक वजूद
जो कुछ लोग मिटाने चले हैं
मेरे उन विचारों पर
पर्दा डालने में लगे हैं
मेरी खूबियोंं में भी
दिखती हैं उन्हें ख़ामियाँ
सवाल मेरे पूछने पर कहते है
यह तुमने क्यूँ और क्या किया?
रीति रिवाज़ों के नाम पर
मुझ पर पाबंदीयाँ लगाते हैं
उनके खिलाफ आवाज़ उठाने पर
मुझ पर उँगलियाँ उठाते हैं
मजबूत हौसलों से डटे रहने पर
धमकाने मुझे लगते हैं
कहते है तुम अपनी हद में रहो
वरना तुम्हें सब्खत सिखा सकते हैं
अपनी मर्जी क्यूँ
तुम मेरी हद तय करना चाहते हो
अपनी इस सोच से
तुम कौन-सा बदलाव लाना चाहते
तुम्हारी यह सोच
मेरे हौसलों को नहीं रोक सकती
मेरे हौसले बुलंद है
तुम्हारी यह सोच कभी कामयाब नहीं हो सकती
इतिहास गवाह है
नारी ने आवाज़ उठाई है और उठाती रहेगी
हर वह सोच जो उसे मिटाना चाहती है
उस सोच का वजूद मिटाया है और मिटाएगी